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और कितने

  • Writer: Mahira
    Mahira
  • Apr 14, 2020
  • 2 min read

ख्वाब में ना सोचा था इस देश में रह कर भी होगा ऐसा, की मेरे बोल ही बन जाएंगे इतने जानलेवा, जो खत्म कर देंगे एक उठती हुई आज़ादी की आवाज़ को ।

वह मंज़र जो हुआ था उस रोज़ , कभी डरी ना थी मै उस्से पहले , दहल गई थी उस रोज़ मैं, जब वह आया मेरे पास, जानती नहीं थी उस आदमी को।

नहीं पता था कि जो चीजें सिर्फ़ एक स्क्रीन के पीछे देखती थी कभी वह होगा मेरे साथ, वह चीजें जो आज तक देखीं थीं उस शीशे के पीछे, वह आज हो रहा था मेरी आंखों के सामने मेरे साथ।

वह दर्द मैं कैसे बयान करूं, कैसे बताऊं उस दर्द के बारे में तुमको मैं, जो उस वक़्त मैं महसू कर रही थी जब उस इंसान ने अपने हाथ में ली हुई गन से गोली चलाई। आंखें बंद थीं मेरी जब मुझे वह “खट” कि आवाज़ आई और फिर वह बू वह बू कुछ अजीब थी, खोली आंखें तो सामने देखा कि जिस जगह पर मैं हूं वहां मानो की एक ख़ून का समंदर बन गया हो और वह आदमी वह आदमी मेरी आंखों से धीरे धीरे गायब हो रहा था, आहिस्ता आहिस्ता वह दर्द बढ़ता ही चला जा रहा था, लगी थी मेरे जब वह गोली, चीरती चली गई मेरे शरीर को वह, मै चीखी चिल्लाई पर पता था कोई मदद को नहीं आयेगा, नहीं आयेगा कोई बचाने।

भूल गई थी कि जब एक आवाज़ उठती है आज़ादी के लिए इंसाफ के लिए तब उसको दबाने वाले भी बहुत तादात में निकल आते हैं, और उस आवाज़ को हमेशा के लिए बंद कर देते हैं। लेकिन यह इत्नी आवाज़ें हैं कि तुम मारते चले जाओगे और यह बढ़ती ही चली जाएंगी।

लोगों के हाक़ के लिए लड़ना बुरा लग गया किसीको, दर लग गया उसको की अब वह बचेगा नहीं जब तक आवाज़ें बंद नहीं होती, लेकिन कितनों की आवाज़ें बंद करोगे। मुझे दर नहीं था मरने का, मुझे दर है, मैं तो चुप हो गई पर और कितने? 

 
 
 

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